क्या कहें अपनी उस की शब की बात कहिए होवे जो कुछ भी ढब की बात अब तो चुप लग गई है हैरत से फिर खुलेगी ज़बान जब की बात नुक्ता-दानान-ए-रफ़्ता की न कहो बात वो है जो होवे अब की बात किस का रू-ए-सुख़न नहीं है उधर है नज़र में हमारी सब की बात ज़ुल्म है क़हर है क़यामत है ग़ुस्से में उस के ज़ेर-ए-लब की बात कहते हैं आगे था बुतों में रहम है ख़ुदा जानिए ये कब की बात गो कि आतिश-ज़बाँ थे आगे 'मीर' अब की कहिए गई वो तब की बात