क्या कहिए राह-ए-शौक़ को किस तरह सर किया हम ने सफ़र फ़ज़ाओं में बे-बाल-ओ-पर किया ज़ुल्फ़ उस की हो रही थी परेशाँ हवाओं में हम ये समझ रहे थे दुआ ने असर किया पूछो न किस तरह से गुज़ारी है ज़िंदगी मद्धम से इक दिए ने हवा में सफ़र किया 'फ़ाख़िर' गुज़र रहे हैं हम इस दौर से यहाँ जिस ने मोहब्बतों को भी मरहून-ए-ज़र किया