क्या कर रहे हो ज़ुल्म करो राह राह का कहते हैं बे-जिगर है बड़ा तीर आह का यूँ रौंगटे लरज़ते हैं पूछेंगे रोज़-ए-हश्र क्यूँ एक दिन भी ख़ौफ़ न आया गुनाह का हालत पे मेरी उन के भी आँसू निकल पड़े देखा गया न यास में आलम निगाह का किसरा का ताक़ काबे के बुत मुँह के बल गिरे शोहरा सुना जो अशहदो-अन-ला-इलाह का 'शाइर' अजीब रंग से गुज़री है अपनी उम्र दुनिया में नाम भी न सुना ख़ैर-ख़्वाह का