क्या करें तदबीर-ए-वहशत ऐ दिल-ए-दीवाना हम उस से मिल भी तो नहीं सकते हैं आज़ादाना हम हम रहें दूरी कश-ए-मए ग़ैर मस्त-ए-अर्ग़वाँ आज टकरा देंगे हर पैमाने से पैमाना हम ढूँढ लेगा आप मंज़िल कारवान-ए-ज़िंदगी ग़ैर का एहसान क्यूँ लें हिम्मत-ए-मर्दाना हम लब रहे ख़ामोश लेकिन सारी बातें हो गईं इक नज़र में कह गए अफ़्साना-दर-अफ़्साना हम जिस तरह इंसाँ को ले डूबे हैं शैख़-ओ-बरहमन लाओ साग़र में डुबो दें मस्जिद-ओ-बुत-ख़ाना हम जिस को दुनिया में किसी ने मुँह लगाया ही नहीं महफ़िल-ए-रिंदाँ में हैं टूटा हुआ पैमाना हम काश कोई देख ही लेता निगाह-ए-लुत्फ़ से आए थे महफ़िल में 'जामी' कितने मुश्ताक़ाना हम