क्या करूँ इस मसअले के सामने दश्त है कच्चे घड़े के सामने तह-ब-तह मंज़र खुलेगा आँख पर आइना है आइने के सामने इस लरज़ते अश्क की हिम्मत तो देख डट गया है क़हक़हे के सामने जान ले कि तेरे लब कुछ भी नहीं आगही के ज़ाइक़े के सामने कर रही है बे-सबाती पर ख़िताब एक सूई बुलबुले के सामने जानता हूँ मास्क के पीछे का दुख रो रहा हूँ मस्ख़रे के सामने