क्या करूँ शरह ख़स्ता-जानी की मैं ने मर मर के ज़िंदगानी की हाल-ए-बद गुफ़्तनी नहीं मेरा तुम ने पूछा तो मेहरबानी की सब को जाना है यूँ तो पर ऐ सब्र आती है इक तिरी जवानी की तिश्ना-लब मर गए तिरे आशिक़ न मिली एक बूँद पानी की बैत-बहसी समझ के कर बुलबुल धूम है मेरी ख़ुश-ज़बानी की जिस से खोई थी नींद 'मीर' ने कल इब्तिदा फिर वही कहानी की