क्या ख़ाक कहूँ मतलब-ए-दिलदार के आगे सो और सुनाएगा वो अग़्यार के आगे बोला था जो आग़ाज़-ए-मोहब्बत में बड़ा बोल आया वही आख़िर दिल-ए-बीमार के आगे रोका ही किया ज़ब्त-ए-मोहब्बत सर-ए-महफ़िल सर झुक ही गया उस बुत-ए-अय्यार के आगे पैदा नहीं दुनिया में दवा-ए-मरज़-ए-इश्क़ क्या लोग न होते थे इस आज़ार के आगे फ़रियादी-ए-बे-दाद-ए-जफ़ा जान के मुझ को महशर में वो चलते हुए ललकार के आगे मरता है कसी और पे अब ग़ैर सुना है बोलूँगा कभी झूट न सरकार के आगे आ जाए 'नसीम' उस को तरह्हुम तो अजब क्या चल ले तो चलें तुझ को तिरे यार के आगे