क्या ख़बर थी इंक़लाब आसमाँ हो जाएगा क़ोरमा क़लिया नसीब-ए-अहमक़ां हो जाएगा ज़ुल्मत-ए-बातिल के दामन में छुपेगा नूर-ए-हक़ दाल की आग़ोश में क़ीमा निहाँ हो जाएगा केक बिस्कुट खाएँगे उल्लू-के-पट्ठे रात दिन और शरीफ़ों के लिए आटा गिराँ हो जाएगा कंट्रोल उस के लब-ए-शीरीं पे गर यूँ ही रहा खांड का शर्बत नसीब-ए-दुश्मनाँ हो जाएगा ऐ भुने तीतर न डर बावर्चियों की क़ैद से पेट मेरा तेरी ख़ातिर आशियाँ हो जाएगा ऐ सिकंदर मुर्ग़ का है शोरबा आब-ए-हयात ख़िज़्र भी इस को अगर पी ले जवाँ हो जाएगा जब ये कहता हूँ कि कुछ सामान-ए-दावत कीजिए वो ये कह कर टाल देते हैं कि हाँ हो जाएगा