क्या ख़बर थी कोई रुस्वा-ए-जहाँ हो जाएगा कुछ न कहना भी मिरा हुस्न-ए-बयाँ हो जाएगा अपने दीवाने का तुम जोश-ए-जुनूँ बढ़ने तो दो आस्तीं दामन गरेबाँ धज्जियाँ हो जाएगा आशिक़-ए-जाँ-बाज़ हैं हम मुँह न मोड़ेंगे कभी तुम कमाँ से तीर छोड़ो इम्तिहाँ हो जाएगा टूटी फूटी क़ब्र भी कर दो बराबर शौक़ से ये भी अपनी बे-निशानी का निशाँ हो जाएगा शादयाने बज रहे हैं आज जिस जा 'नाज़' कल दम ज़दन में देख लेना क्या समाँ हो जाएगा