क्या क्या अजल ने जान चुराई तमाम शब कोई भी आरज़ू न बर आई तमाम शब दिल-सोज़ कब हुए हैं कि जब ख़ाक हो गया तुर्बत पे मेरी शम्अ जलाई तमाम शब ऐ वा-ए-तल्ख़-कामी-ए-रोज़-ए-बद-फिराक़ नासेह ने जान-ए-ग़म-ज़दा खाई तमाम शब अज़-बस यक़ीन-ए-वादा-ए-दीदार-ए-ख़्वाब था क्या ख़ुश हुए कि नींद न आई तमाम शब इक आह-ए-दिल-नशीं से वो बुत मुन्फ़इल हुआ वल्लाह क्या नदामत उठाई तमाम शब लगते ही आँख देख लिया जल्वा-ए-निहाँ पेश-ए-नज़र थी शान-ए-ख़ुदाई तमाम शब