क्या क्या न ज़िंदगी के फ़साने रक़म हुए लेकिन जो हासिल-ए-ग़म-ए-दिल थे वो कम हुए ऐ तिश्नगी-ए-दर्द कोई ग़म कोई करम मुद्दत गुज़र गई है इन आँखों को नम हुए मिलने को एक इज़्न-ए-तबस्सुम तो मिल गया कुछ दिल ही जानता है जो दिल पर सितम हुए दामन का चाक चाक-ए-जिगर से न मिल सका कितनी ही बार दस्त-ओ-गरेबाँ बहम हुए किस को है ये ख़बर कि ब-उनवान-ए-ज़िंदगी किस हुस्न-ए-एहतिमाम से मस्लूब हम हुए अर्बाब-ए-इश्क़-ओ-अहल-ए-हवस में है फ़र्क़ क्या सब ही तिरी निगाह में जब मोहतरम हुए 'शाइर' तुम्हीं पे तंग नहीं अरसा-ए-हयात हर अहल-ए-फ़न पे दहर में ऐसे करम हुए