क्या लड़के दिल्ली के हैं अय्यार और नट-खट दिल लें हैं यूँ कि हरगिज़ होती नहीं है आहट हम आशिक़ों को मरते क्या देर कुछ लगे है चट जिन ने दिल पे खाई वो हो गया है चट-पट दिल है जिधर को ऊधर कुछ आग सी लगी थी उस पहलू हम जो लेटे जल जल गई है करवट कलियों को तू ने चट चट ऐ बाग़बाँ जो तोड़ा बुलबुल के दिल जिगर को ज़ालिम लगी है क्या चट जी ही हटे न मेरा तो उस को क्या करूँ मैं हर-चंद बैठता हूँ मज्लिस में उस से हट हट देती है तूल बुलबुल क्या नाला-ओ-फ़ुग़ाँ को दिल के उलझने से हैं ये आशिक़ों की फट फट मुर्दे न थे हम ऐसे दरिया पे जब था तकिया उस घाट गाह ओ बेगह रहने लगा था जमघट रुक रुक के दिल हमारा बे-ताब क्यूँ न होवे कसरत से दर्द-ओ-ग़म की रहता है उस पे झुरमुट शब 'मीर' से मिले हम इक वहम रह गया है उस के ख़्याल-ए-मू में अब तो गया बहुत लट