क्या लुत्फ़ कि वो ज़ुल्म भी जारी नहीं रखते क्या दोस्त हैं कुछ लाज हमारी नहीं रखते हम लिपटे हुए घर से भी रहते नहीं लेकिन हिजरत का कोई ख़ौफ़ भी तारी नहीं रखते ए'जाज़-ए-तख़य्युल से पहुँचते हैं सर-ए-अर्श हम अहल-ए-हुनर कोई सवारी नहीं रखते रहने पे नहीं तुम ही जो तय्यार तो जाओ हम कोई निशानी भी तुम्हारी नहीं रखते ये याद रहे आन पे मर मिटते हैं हम लोग मत भूलना हम जान भी प्यारी नहीं रखते क्यूँ बोझ परों का लिए फिरते हैं न जाने 'अय्याज़' परिंदे जो अटारी नहीं रखते