क्या मिला हम को तेरी यारी में रहे अब तक उमीद-वारी में हाथ गहरा लगा कू-ए-क़ातिल ज़ोर-ए-लज़्ज़त है ज़ख़्म-ए-कारी में दिल जो बे-ख़ुद हुआ सबा लाई किस की बू निगहत-ए-बहारी में टुक उधर देख तू भला ऐ चश्म फ़ाएदा ऐसी अश्क-बारी में चट लगा देते हैं मिरे आँसू सिल्क-ए-गौहर के आब-दारी में रूठ कर उस से मैं जो कल भागा ना-गहाँ दिल की बे-क़रारी में आ लिया उस ने दौड़ कर मुझ को ताक के ओछल एक क्यारी में यूँ लगा कहने बस दिवाना न बन पावँ रख अपना होशियारी में कब तलक मैं भला रहूँ शब-ओ-रोज़ तेरी ऐसी मज़ाज-दारी में है समाया हुआ जो लड़का-पन आप की वज़्अ' प्यारी प्यारी में अपनी बकरी का मुँह चिड़ाते वक़्त क्या ख़ुश आती है ये तुम्हारी ''में'' बंदा-ए-बू-तुराब है 'इंशा' शक नहीं उस की ख़ाकसारी में