क्या मुआफ़िक़ हो दवा इश्क़ के बीमार के साथ जी ही जाते नज़र आए हैं इस आज़ार के साथ रात मज्लिस में तिरी हम भी खड़े थे चुपके जैसे तस्वीर लगा दे कोई दीवार के साथ मर गए पर भी खुली रह गईं आँखें अपनी कौन इस तरह मुआ हसरत-ए-दीदार के साथ शौक़ का काम खिंचा दूर कि अब मेहर मिसाल चश्म-ए-मुश्ताक़ लगी जाए है तूमार के साथ राह उस शोख़ की आशिक़ से नहीं रुक सकती जान जाती है चली ख़ूबी-ए-रफ़्तार के साथ वे दिन अब सालते हैं रातों को बरसों गुज़रे जिन दिनों देर रहा करते थे हम यार के साथ ज़िक्र-ए-गुल क्या है सबा अब कि ख़िज़ाँ में हम ने दिल को नाचार लगाया है ख़स ओ ख़ार के साथ किस को हर दम है लहू रोने का हिज्राँ में दिमाग़ दिल को इक रब्त सा है दीदा-ए-ख़ूँ-बार के साथ मेरी उस शोख़ से सोहबत है बे-ऐनिहि वैसी जैसे बन जाए किसू सादे को अय्यार के साथ देखिए किस को शहादत से सर-अफ़राज़ करें लाग तो सब को है उस शोख़ की तलवार के साथ बेकली उस की न ज़ाहिर थी जो तू ऐ बुलबुल दमकश-ए-'मीर' हुई उस लब ओ गुफ़्तार के साथ