क्या न-दीदों से ज़माने को सरोकार है आज एक दिरहम जो रखे मालिक-ए-दीनार है आज कल तो मा'मूरा-ए-आलम को डुबाया ऐ चश्म क्या ख़राबी है तू फिर रोने को तय्यार है आज देखना देखना क्या दिल में लगी आतिश-ए-इश्क़ क्यूँ मिरा नाला-ए-ख़ूँ-बार शरर-बार है आज ऐ 'रज़ा' ख़त्त-ए-सियह उस के नहीं चेहरे पर हुस्न के वाक़िए का यार अज़ा-दार है आज