क्या रूप दोस्ती का क्या रंग दुश्मनी का कोई नहीं जहाँ में कोई नहीं किसी का इक तिनका आशियाना इक रागनी असासा इक मौसम-ए-बहाराँ मेहमान दो घड़ी का आख़िर कोई किनारा इस सैल-ए-बे-कराँ का आख़िर कोई मुदावा इस दर्द-ए-ज़िंदगी का मेरी सियाह शब ने इक उम्र आरज़ू की लरज़े कभी उफ़ुक़ पर तागा सा रौशनी का शायद इधर से गुज़रे फिर भी तिरा सफ़ीना बैठा हुआ हूँ साहिल पर नय-ब-लब कभी का इस इल्तिफ़ात पर हों लाख इल्तिफ़ात क़ुर्बां मुझ से कभी न फेरा रुख़ तू ने बे-रुख़ी का अब मेरी ज़िंदगी में आँसू हैं और न आहें लेकिन ये एक मीठा मीठा सा रोग जी का ओ मुस्कुराते तारो ओ खिलखिलाते फूलो कोई इलाज मेरी आशुफ़्ता-ख़ातिरी का