क्या सहल समझे हो कहीं धब्बा छुटा न हो ज़ालिम ये मेरा ख़ून है रंग-ए-हिना न हो यारब मुझे है दाग़-ए-तमन्ना बहुत अज़ीज़ पहलू से दिल जुदा हो मगर ये जुदा न हो राहें निकालता है यही सोज़-ओ-साज़ की पहलू में दिल न हो तो कोई हौसला न हो तुम और वफ़ा करो ये न मानूँगा मैं कभी उस को फ़रेब दो जो तुम्हें जानता न हो क्या क्या 'शरर' ज़लील हुए आबरू गई ऐसा भी आशिक़ी का किसी को मज़ा न हो