क्या यादगार दिल पे लगाई ख़राश है जर्राह-ए-कम-ए-हुनर मुझे तेरी तलाश है सैक़ल-गर-ए-ज़माँ तू ज़रा मो'जिज़ा दिखा यादों के आइने में कोई पाश पाश है माज़ी की सरहदों से परे जा के एक दिन पूछूँगा अपने आप से क्या बूद-ओ-बाश है क्या कीजिएगा पढ़ के मिरी ख़ुद-नविश्त को लिखा वरक़ वरक़ पे अगर और काश है इस कश्मकश में रहते हैं फ़िक्र-ओ-क़लम सदा रखना भी राज़ है उसे करना भी फ़ाश है बे-रोज़गार हिज्र के ताजिर ने कर दिया मज़दूर-ए-वस्ल हूँ सो तलाश-ए-मआश है क़ाब-ए-जहाँ पे रक्खे फलों ने मुझे कहा मेहमान तेरे हिस्से में इक-आध क़ाश है