क्या ये आफ़त नहीं अज़ाब नहीं दिल की हालत बहुत ख़राब नहीं बूद पल पल की बे-हिसाबी है कि मुहासिब नहीं हिसाब नहीं ख़ूब गाव बजाओ और पियो इन दिनों शहर में जनाब नहीं सब भटकते हैं अपनी गलियों में ता-ब-ख़ुद कोई बारयाब नहीं तू ही मेरा सवाल अज़ल से है और साजन तिरा जवाब नहीं हिफ़्ज़ है शम्स-ए-बाज़ग़ा मुझ को पर मयस्सर वो माहताब नहीं तुझ को दिल-दर्द का नहीं एहसास सो मिरी पिंडलियों को दाब नहीं नहीं जुड़ता ख़याल को भी ख़याल ख़्वाब में भी तो कोई ख़्वाब नहीं सतर-ए-मू उस की ज़ेर-ए-नाफ़ की हाए जिस की चाक़ू-ज़नों को ताब नहीं