क्यों भला ढूँडते जाऊँ तिरे रस्ते जानाँ तू रग-ए-जाँ से भी नज़दीक है मेरे जानाँ बेवफ़ाई की भला मुझ से शिकायत कैसी तू ने ख़ुद ख़ुद पे लगाए हैं ये पहरे जानाँ दिल पे सौ बार रफ़ू और रफ़ू क्या मा'नी ज़ख़्म इतने तो न थे दिल के ये गहरे जानाँ मैं तो कल भी था वही आज वही कल भी वही लोग चेहरे पे लगा लेते हैं चेहरे जानाँ कुछ नए हैं तो नहीं मेरे मरासिम उस से थे अज़ल ही से तअ'ल्लुक़ मिरे गहरे जानाँ