क्यों कहते हो पाँव नहीं घर चलता है ऐसी ही बातों पर ख़ंजर चलता है आसूदा है कौन तमाशा-बीनी से आँखें थक जाती हैं मंज़र चलता है रात गए सब आपस में मिल जाते हैं ख़्वाबों की दुनिया में बिस्तर चलता है शीशे का घर अच्छा लगता है लेकिन शीशे के घर पर ही पत्थर चलता है प्यास बुझाना साहिल साहिल जा कर क्या ख़ुद आएगा ख़ूब समुंदर चलता है बाहर बाहर यूँही नहीं मैं बे-तरतीब तेज़ हवा का झोंका अंदर चलता है 'शाहिद' वो मंज़र कैसा होता है जब पगडंडी पर चाँद उतर कर चलता है