क्यों किसी से हो शिकायत आप को आप ही से है मोहब्बत आप को हर तरफ़ रक़्साँ फ़रेब-ए-इल्तिफ़ात मुस्कुराने की है आदत आप को जाने कब तक सब्र करना है हमें जाने कब होगी नदामत आप को क़ुव्वत-ए-बर्दाश्त मेरी कम न हो और ख़ुदा रखे सलामत आप को फ़र्क़ पड़ता कुछ तो करता अर्ज़ कुछ क्या सुनाऊँ दिल की दुर्गत आप को मुस्कुरा देता हूँ मैं तकलीफ़ में और हो जाती है ज़हमत आप को किस को 'राग़िब' अब वफ़ा का पास है क्यों न हम समझें ग़नीमत आप को