ला इक ख़ुम-ए-शराब कि मौसम ख़राब है कर कोई इंक़लाब कि मौसम ख़राब है ज़ुल्फ़ों को बे-ख़ुदी की रिदा में लपेट दे साक़ी पए-शबाब कि मौसम ख़राब है जाम-ओ-सुबू के होश ठिकाने नहीं रहे मुतरिब उठा रुबाब कि मौसम ख़राब है ग़ुंचों को ए'तिबार-ए-तुलू-ए-चमन नहीं रुख़ से उलट नक़ाब कि मौसम ख़राब है ऐ जाँ! कोई तबस्सुम-ए-रंगीं की वारदात फीका है माहताब कि मौसम ख़राब है