लबरेज़ हो चुका है पैमाना ज़िंदगी का सुन जाओ अब भी आ कर अफ़्साना ज़िंदगी का जब हाल आप ही ने पूछा न ज़िंदगी का फिर किस को हम सुनाएँ अफ़्साना ज़िंदगी का अब हम हैं और ज़ालिम तेरी गली के चक्कर गर्दिश में आ गया है पैमाना ज़िंदगी का क्या आप सुन सकेंगे रूदाद-ए-यास-ओ-हसरत क्या आप को सुनाऊँ अफ़्साना ज़िंदगी का आओ कि बे-तुम्हारे दम रुक गया है लब पर क्यों तूल कर रही हो अफ़्साना ज़िंदगी का ख़ुद मेरे चारागर का चेहरा उतर चला है अब दे फ़रेब मुझ को दुनिया न ज़िंदगी का आओ कि आ रहे हैं अब नज़्अ' के पसीने या'नी छलक चला है पैमाना ज़िंदगी का तुम भी हो कुछ ख़जिल से मेरा भी रुक चला दम कह दो तो ख़त्म कर दूँ अफ़्साना ज़िंदगी का दामन पे गिर रहे हैं ऐ 'अब्र' अश्क-ए-रंगीं लिखता हूँ ख़ून-ए-दिल से अफ़्साना ज़िंदगी का