लबरेज़-ए-हक़ीक़त गो अफ़साना-ए-मूसा है ऐ हुस्न-ए-हिजाब-आरा किस ने तुझे देखा है महफ़िल सी सजाई है दीदार की हसरत ने हर-चंद तिरा जल्वा महबूब-ए-तमाशा है मिटता है कभी दिल से नक़्श उस की मोहब्बत का नाकाम तमन्ना भी मजबूर तमन्ना है जज़्बात की दुनिया में बरपा है क़यामत सी इस हाल में रू-पोशी क्या आप को ज़ेबा है साक़ी तिरी महफ़िल को रंगीन किया जिस ने वो ख़ून है तक़वे का या जल्वा-ए-मीना है इक शेवा तग़ाफ़ुल है इक इश्वा तजाहुल है ग़ुस्सा है बजा तेरा शिकवा मिरा बेजा है ये बे-दिली अच्छी है दीवाना न बन 'वहशत' अंजाम तमन्ना का हसरत के सिवा क्या है