लफ़्ज़ का दरिया उतरा दश्त-ए-मआनी फैला मिस्रा-ए-ऊला ही में मिस्रा-ए-सानी फैला कहीं छुपा होता है दवाम किसी लम्हे में यूँ तो है सदियों पे जहान-ए-फ़ानी फैला दानाई की दुनिया तंग है पेचीदा है या-रब कुछ आसानी कर नादानी फैला दामन-ए-तर ही में तो है अश्कों की नमी भी रहने दे धरती पर यूँही पानी फैला मंअफ़तें ही दर्ज हैं सब की फ़र्द-ए-अमल में वरक़ कुशादा कर थोड़ी नुक़सानी फैला किरदारों की पहचानें गुम होने लगी हैं मेरे लेखक इतना भी न कहानी फैला