लफ़्ज़ से जब न उठा बार-ए-ख़याल कैसे कैसे किया इज़हार-ए-ख़याल दिल में जब दर्द की क़िंदील जली तमतमाने लगे रुख़्सार-ए-ख़याल रूह के ज़ख़्म न मुरझाएँ कभी ता-अबद महके चमनज़ार-ए-ख़याल ग़म पे मौक़ूफ़ है तासीर-ए-बयाँ ग़म से है रौनक़-ए-बाज़ार-ए-ख़याल राकिब-ए-फ़हम है बे-बस 'ताइब' और मुँह-ज़ोर है रहवार-ए-ख़याल