लफ़्ज़ों से तस्वीर बनाते रहते हैं

लफ़्ज़ों से तस्वीर बनाते रहते हैं
जैसे-तैसे जी बहलाते रहते हैं

क़तरे में दरिया का जब दीदार हुआ
हम दामन के दाग़ दिखाते रहते हैं

उन से शायद जन्म जन्म का रिश्ता है
पेड़ परिंदे हमें बुलाते रहते हैं

जब से चेहरा देखा उन की आँखों में
आईने से आँख चुराते रहते हैं

बारिश पंछी ख़ुशबू झरना फूल चराग़
हम को क्या क्या याद दिलाते रहते हैं

उन के दिल में ख़्वाहिश क्यों हो साहिल की
तूफ़ानों से जो टकराते रहते हैं

जिन से फल और साया मिलना मुश्किल है
हम ऐसे भी पेड़ लगाते रहते हैं

नक़्श-ए-पा से बच कर चलता हूँ अक्सर
ये रस्ता दुश्वार बनाते रहते हैं

इक न इक दिन जब बुझना है सब को 'निसार'
क्यों आँधी से लोग डराते रहते हैं


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