लग रही जिस तरह लाला के सारे बन को आग दिल को अपने दाग़ देव ऐ आशिक़ो और तन को आग गुल पे ये शबनम नहीं पानी छिड़कती है बहार हाए-रे किन्ने लगाई आ के इस गुलशन को आग हम सियह-बख़्तों का क्यूँ-कर राएगाँ जावे वबाल शाम नीं फूली ये लागी है फ़लक के तन को आग चल 'यक़ीं' की बात पर ऐ 'इश्क़' हम भी जल मरें क्या ही फूला है पलास और लग रही है बन को आग