लगी है मिसी पान खाए हुए हैं सुनाने पे बेड़ा उठाए हुए हैं ग़ज़ब है हसीनों से दिल का लगाना ये आफ़त के पुतले बनाए हुए हैं मिरे ख़त को फाड़ा रक़ीबों के आगे किसी की वो पट्टी पढ़ाए हुए हैं उलझने से बालों के बिगड़ो न साहिब तुम्हारे ही ये सर चढ़ाए हुए हैं कलेजा हथेली पे रख लूँ तो जाऊँ वो हाथों में मेहंदी लगाए हुए हैं शब-ए-हिज्र जब ख़्वाब देखा ये देखा कि तुझ को गले से लगाए हुए हैं तिरी तेग़ की आब जाती रही है मिरे ज़ख़्म पानी चुराए हुए हैं जिधर देखता हूँ उन्हें का है जल्वा वो नज़रों में ऐसे समाए हुए हैं उतारेंगे किस किस को नज़रों से 'अंजुम' वो क्यूँ आज तेवरी चढ़ाए हुए हैं