लगता नहीं कहीं भी मिरा दिल तिरे बग़ैर दोनों जहाँ नहीं मिरे क़ाबिल तिरे बग़ैर कुछ लुत्फ़-ए-ज़िंदगी नहीं हासिल तिरे बग़ैर पल भर गुज़ारना भी है मुश्किल तिरे बग़ैर तू ही नहीं तो कौन करे मेरी रहबरी कटती नहीं हयात की मंज़िल तिरे बग़ैर दिल पर मिरे ही शाक़ नहीं है तिरा फ़िराक़ ख़ामोश हैं चमन में अनादिल तिरे बग़ैर फूलों के इबतिसाम पे आती है अब हँसी ऐसा बुझा हुआ है मिरा दिल तिरे बग़ैर होश-ओ-हवास-ओ-अक़ल-ओ-ख़िरद दे गए जवाब यानी नहीं हूँ मैं किसी क़ाबिल तिरे बग़ैर हर दम ये सोच है मिरे जीने से फ़ाएदा जब मक़्सद-ए-हयात है बातिल तिरे बग़ैर तकमील-ए-आरज़ू से है तकमील-ए-ज़िंदगी क्यूँकर हो ज़िंदगी मिरी कामिल तिरे बग़ैर कश्ती निकल तो आई है गिर्दाब से मगर दिल डूबने लगा लब-ए-साहिल तिरे बग़ैर हर दम तड़प के लोटता फिरता हूँ ख़ाक पर गोया बना हूँ ताइर-ए-बिस्मिल तिरे बग़ैर आँखें ही पहले रोती थीं अब तो ये क़हर है रोने लगा है ख़ून मिरा दिल तिरे बग़ैर 'नादिर' को जान देने से क्यूँ रोकता है तू जीने से भी है क्या उसे हासिल तिरे बग़ैर