लहरा रही हैं खेत में गंदुम की बालियाँ और पहरे पर बिजोके हैं ले कर दो-नालियाँ रू-ए-सुख़न है उस का ख़रीदार की तरफ़ क़स्साब दे रहा है जो बिल्ली को गालियाँ ख़ंजर उतार देगा जमूरे के पेट में बूढे जवान बच्चे बजाएँगे तालियाँ जूते निकालती हैं अदब से तवाइफ़ें लेकिन फटे जुराबों पे हँसती हैं सालियाँ बूटा सा तन था पहलू में और कुंडली मार के सीने पे साँप जैसी थीं बाहोँ की डालियाँ उतरी तमाम रात मिरे तन की आरती मेहंदी लगे वो हाथ थे फूलों की डालियाँ वल्लाह अक़ीदत आज भी है मेरा सीन से हम को बहुत पसंद हैं बंगाल वालियाँ लौंडों की ठोड़ियों पे जो सब्ज़ा उगा 'शफ़क़' किस काम की रही हैं ये चेहरों की लालियाँ