लहू की लहर में इक ख़्वाब-ए-दिल-शिकन भी गया फिर उस के साथ ही आँखें गईं बदन भी गया बदलते वक़्त ने बदले मिज़ाज भी कैसे तिरी अदा भी गई मेरा बाँकपन भी गया बस एक बार वो आया था सैर करने को फिर उस के साथ ही ख़ुश्बू गई चमन भी गया बस इक तअल्लुक़ बे-नाम टूटने के ब'अद सुख़न तमाम हुआ रिश्ता-ए-सुख़न भी गया