लहू में फूल खिलाने कहाँ से आते हैं नए ख़याल न जाने कहाँ से आते हैं ये कौन लोग हैं हर शाम ताक़-ए-मिज़्गाँ पर चराग़-ए-याद जलाने कहाँ से आते हैं ख़िज़ाँ की शाख़ में हैराँ है आँख की कोंपल पलट के अहद पुराने कहाँ से आते हैं समुंदरों को सिखाता है कौन तर्ज़-ए-ख़िराम ज़मीं की तह में ख़ज़ाने कहाँ से आते हैं ज़माम-ए-अब्र गुरेज़ाँ है किस के हाथों में मुहीत-ए-ख़ोशा में दाने कहाँ से आते हैं सफ़र-ए-नसीब परिंदो! तुम्हारे होंटों पर ये ख़ुश-गवार तराने कहाँ से आते हैं ख़ुशी के अहद चले जाते हैं कहाँ 'सय्यद' उदासियों के ज़माने कहाँ से आते हैं