लहू में तर है ज़माने का इंतिख़ाब वजूद सलीब-ए-वक़्त पे आया है कामयाब वजूद हसद की आग में जलते रहो तो जलते रहो चमन की ख़ाक में होगा मिरा गुलाब वजूद वजूद-ए-ख़ाक ही तो ख़ाक की अमानत है तुम्हारा ख़ौफ़ रहेगा मिरा हिजाब वजूद ये टूटता नहीं झुकता नहीं बदलता नहीं तुम्हारे सारे सवालों का है जवाब वजूद तुम्हारे दिन में मिरा नाम ही तो सूरज है तुम्हारी रात में 'मंज़र' है माहताब वजूद