लहू रगों में सँभाला नहीं गया मुझ से किसी दिशा में उछाला नहीं गया मुझ से सुडौल बाँहों में भरता मैं लोच सावन का वो संग मोम में ढाला नहीं गया मुझ से मैं ख़्वाब पढ़ता था हमसायगी की अबजद से मगर वो हुस्न ख़याला नहीं गया मुझ से वही है मेरे लहू में चमक उलूही सी समय उजालने वाला नहीं गया मुझ से फ़िराक़ कहती थीं नेपाली नद्दियाँ 'आमिर' मगर शिकोह-ए-हिमाला नहीं गया मुझ से