लाहूत पर न देखें जो क़ुदसियाँ तमाशा सो हम को है दिखाता इश्क़-ए-बुताँ तमाशा टुक कीजे चश्म-ए-दिल से याँ सैर मय-कदे की हैगा अजब मज़े का पीर-ए-मुग़ाँ तमाशा जिस ने सुने ये मेरे अशआ'र ख़ुश हो बोला नाम-ए-ख़ुदा है तो कुछ ऐ नौजवाँ तमाशा अल्लाह री फ़साहत अल्लाह री बलाग़त ऐसा कहाँ झमकड़ा ऐसा कहाँ तमाशा शोख़ी अदा सो ऐसी जोश-ओ-ख़रोश इतना बंदिश धुआँ सो ये और तर्ज़-ए-बयाँ तमाशा दीवान सैंकड़ों हैं हम ने तो देखे लेकिन इन में नज़र पड़ा कब पाया जो याँ तमाशा क्या ख़ूब वाह माशा-अल्लाह है अजब कुछ दीवान-ए-मीर इन्शाअल्लाह ख़ाँ तमाशा