लाई तिरी महफ़िल में मुझे आरज़ू-ए-दीद दरपेश है फिर मरहला-ए-तूर की तजदीद मायूस तमन्नाओं को ऐ दोस्त तिरी याद जैसे उफ़क़-ए-बीम पे इक अख़्तर-ए-उम्मीद ख़ुद अपना क़फ़स बन गई कोताही-ए-परवाज़ कुछ दूर नहीं वर्ना जहान-ए-मह-ओ-ख़ुर्शीद एक एक अदा शौक़ की तहज़ीब पे माइल एक एक नज़र शोख़ी-ए-जज़्बात की तन्क़ीद जो ख़ुद न समझ पाए वो समझाए तो कैसे अफ़्कार में इबहाम तो गुफ़्तार में ताक़ीद जीना भी इबादत उसे पीना भी इबादत हासिल हो जिसे चश्म-ए-सियह-मस्त की ताईद पिंदार-ए-जुनूँ हो न सका राम-ए-गदाई रास आए न 'ताबाँ' मुझे अल्ताफ़-ए-सनादीद