लम्हों को उदासी में समोना नहीं अच्छा तक़दीर बिगड़ जाए तो रोना नहीं अच्छा हर एक को हर रुख़ से हक़ीक़त नज़र आए इस घर में कोई ऐसा खिलौना नहीं अच्छा जो लोग सदा ज़ुल्म के काँटों पे पले हैं उन के लिए फूलों का बिछौना नहीं अच्छा पहले भी बहुत अश्क सँभाले थे मगर आज मोती वो मिले हैं कि पिरोना नहीं अच्छा 'मंज़र' भी नफ़ासत के अलम-दार थे लेकिन अब ख़ून के इन दाग़ों को धोना नहीं अच्छा