लरज़ जाता है थोड़ी देर को तार-ए-नफ़स मेरा सर-ए-मैदाँ कभी जब जस्त करता है फ़रस मेरा मैं ख़ुद से दूर हो जाता हूँ उस से दूर होने पर रिहाई चाहता हूँ और मुक़द्दर है क़फ़स मेरा ज़रा मुश्किल से अब पहचानता हूँ इन मनाज़िर को क़याम उस ख़ाक-दाँ पर था अभी पिछले बरस मेरा दुआ करता हूँ मिलने की तमन्ना कर नहीं पाता भला क्या सामना कर पाएँगे अहल-ए-हवस मेरा नहीं भूलेगी मेरी दास्तान-ए-इश्क़-ए-दुनिया को कि सहरा में अभी तक नाम लेती है जरस मेरा नुमूद-ए-अक्स की इस को ज़मानत कौन दे 'साजिद' नहीं है जब शगुफ़्त-ए-आईना पर कोई बस मेरा