लरज़ उठा है मिरे दिल में क्यूँ न जाने दिया तिरा पयाम तो ख़ामोश सी हवा ने दिया जला रहा था मुझे मैं ने भी जलाने दिया उजाला उस ने दिया भी तो किस बहाने दिया अभी कुछ और ठहर जाता मेरे कहने पर वो जाने वाला था ख़ुद ही सो मैं ने जाने दिया वो अपनी सैर के क़िस्से मुझे सुनाता रहा मुझे तो हाल-ए-दिल उस ने कहाँ सुनाने दिया मैं शुक्र उस का न कैसे अदा करूँ जानाँ शुऊ'र मुझ को मोहब्बत का जिस ख़ुदा ने दिया करम के पल में ये रौशन हुआ ब-हम्दिल्लाह नहीं बुझेगा मिरा तुझ से ऐ ज़माने दिया 'शुमार' सामने उस के भी गुफ़्तुगू के वक़्त जो रंग चेहरे पे आया था मैं ने आने दिया