लौ हूँ मगर चराग़ के अंदर नहीं हूँ मैं उथली सियाहियों को भी अज़बर नहीं हूँ मैं दीवार हूँ और एक जबीं का सवाल हूँ सिमटे हुए क़दम के लिए दर नहीं हूँ मैं आँखों के पार आख़िरी नद्दी है नींद की नद्दी की तह में रेंगता पत्थर नहीं हूँ मैं शीशे के उस तरफ़ भी दिखाई नहीं दिया पानी के इंजिमाद से बेहतर नहीं हूँ मैं कुछ पेड़ आ रहे हैं मिरी धूप छाँटने सूरज के इख़्तियार से बाहर नहीं हूँ मैं