ले चले हो तो कहीं दूर ही ले जाना मुझे मत किसी बिसरी हुई याद से टकराना मुझे मैं तो इस में भी बहुत ख़ुश हूँ तिरा नाम तो है एक जुरआ' भी तिरे नाम का मय-ख़ाना मुझे आज दानिस्ता तग़ाफ़ुल से हूँ हारा हुआ मैं कल तलक उम्र की सच्चाई थी अफ़्साना मुझे तू ने भी मान लिया लोगों का फैलाया सच तू ने भी जाते हुए लौट के देखा न मुझे इल्म के तौर पे सीखे हैं मोहब्बत के रुमूज़ तुम बिना सोचे ही कह जाते हो दीवाना मुझे आ मिरी जान के दुश्मन तिरी तादीब करूँ तेरा हर वार लगा ग़ैर दिलेराना मुझे अब मुझे तू ही बता दोनों में क्यूँ तुझ को चुनूँ तू ने रक्खा न मुझे दर्द ने छोड़ा न मुझे