ले दीदा-ए-तर जिधर गए हम डबरे जो थे ख़ुश्क भर गए हम तुझ इश्क़ में रोज़-ए-ख़ुश न देखा दुख भरते ही भरते मर गए हम तेरा जो सितम है उस की तू जान अपनी थी सौ ख़ूब कर गए हम ये क़ितआ पढ़े था सोज़-ए-दिल से सौदा के जो रात घर गए हम जूँ शम्अ लबों पर आ रहा जी तन था सो गुदाज़ कर गए हम इतनी भी पतंग पेश-क़दमी! गर शाम नहीं सहर गए हम होगी न किसी को ये ख़बर भी उस मज्लिस से किधर गए हम