ले कहीं दूर चल ऐ ग़म-ए-दिल मुझे रास आई नहीं तेरी महफ़िल मुझे गुज़रे हैं दिन जिसे देखते देखते देखता ही नहीं अब वो क़ातिल मुझे दिल की दुनिया का आलम बता दूँ भला पास कुछ भी नहीं सब है हासिल मुझे डूबता ही रहा और ख़ामोश था देखता रह गया देर साहिल मुझे ये सदा दे रहा कौन 'अहसन' बता राह कैसी दिखाई है मंज़िल मुझे