लेटा हुआ हूँ साया-ए-ग़ुर्बत में घर से दूर दिल से क़रीं हैं अहल-ए-वतन और नज़र से दूर जब तक है दिल रहीन-ए-मआल-ओ-असीर-ए-अक़्ल रहना है तुझ से और तिरी रहगुज़र से दूर ऐ कैफ़ उन की मस्त निगाहों में छुप के आ ऐ दर्द-ए-दम ज़दन में हो मेरे जिगर से दूर इक दिन उलटने वाली है ज़ाहिद बिसात-ए-ज़ोहद कब तक रहेगा दिल निगह-ए-फ़ित्ना-गर से दूर वो कोई ज़िंदगी है जवानी है वो कोई ऐ दोस्त जो है तेरे जमाल-ए-नज़र से दूर क्या आई तेरे जी में कि तक़दीर यूँ मुझे फेंका है ला के वादी-ए-ग़ुर्बत में घर से दूर ऐ हुस्न-ए-बे-पनाह बताए कोई मुझे दुनिया की कौन चीज़ है तेरे असर से दूर अल्लाह रे नसीब कि पाई है वो फ़ुग़ाँ जो उम्र भर रही है फ़रेब-ए-असर से दूर 'अलताफ़' नाज़ अपनी गदाई पे है मुझे दामन है उस का साया-ए-लाल-ओ-गुहर से दूर