लिखे हुए अल्फ़ाज़ में तासीर नहीं है दिल पर जो किसी इश्क़ की तहरीर नहीं है इस ज़ीस्त के हर मोड़ पे लड़नी है मुझे जंग क़िर्तास ओ क़लम हैं कोई शमशीर नहीं है मुमकिन ही नहीं था तुझे आवाज़ लगाते है इश्क़ की रूदाद प तश्हीर नहीं है दुनिया में वफ़ा ढूँडने निकले थे नदारद इक बोझ है दिल पर मिरे शहतीर नहीं है लम्हे में पलट देंगे ज़माने को तुम्हारे है अहद-ए-हुनर जान ये तस्ख़ीर नहीं है पैवस्त हैं इस घर से बहुत आप की यादें गुज़रे हुए लम्हात हैं ज़ंजीर नहीं है चुप-चाप बहुत देर से फिरते हैं गुरेज़ाँ दुनिया में कोई आप सा दिल-गीर नहीं है