लिखूँ हुरूफ़ मैं उजली इबारतों जैसे उतार मुझ पे भी अल्फ़ाज़ मशअ'लों जैसे कोई नवेद कि हम भी पलट के घर आएँ कोई सदा कि हैं हम भी मुसाफ़िरों जैसे किसे तलाश करोगे शबों के जंगल में बिखर गए हैं कई दोस्त जुगनूओं जैसे गए तो आँख को सहरा मिसाल कर के गए थे मेरे साथ भी कुछ लोग साहिलों जैसे बस एक पल ही हमें ख़ाक कर गया 'ताहिर' सजे हुए थे कई ख़्वाब तितलियों जैसे