लिए आदम ने अपने बेटे पाँच जुदी होती है हौले हौले आँच क़ैद-ए-मज़हब से मुझ को क्या मतलब मैं नहीं जानता हूँ तीन और पाँच किस दहन ने ये उस को तंग किया तिफ़्ल-ए-ग़ुंचा की जो निकल गई काँच आदमी है वही जो दुनिया में झूट को झूट जाने साँच को साँच उस्तुख़ाँ-बंदी-ए-तन-ए-मजनूँ अपनी नज़रों में है पतंग का ढाँच राम-ए-मजनूँ नहीं हुई लैला मिस्ल-ए-आहू बिरह भरे है कलाँच गो पढ़ीं तू ने सौ किताब तो क्या 'मुसहफ़ी' इक ख़त-ए-जबीं को तू बाँच